🙏 नंदीग्राम और भरतकुंड - त्याग और भक्ति की पावन भूमि
अयोध्या की पावन धरा में सरयू तट से लगभग 15 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थित है – नंदीग्राम, जिसे भरतकुंड के नाम से भी जाना जाता है। यह वही पावन तपोभूमि है जहाँ त्रेतायुग में भगवान श्रीराम के छोटे भाई, भक्तशिरोमणि भरत ने अद्भुत त्याग, समर्पण और भ्रातृप्रेम का ऐसा अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया जो आज भी भारतीय संस्कृति में अमर है।
जब प्रभु श्रीराम को कैकेयी द्वारा माँगे गए वरदान के कारण 14 वर्ष का वनवास मिला और महाराज दशरथ का शोक में देहांत हो गया, तब भरत को अयोध्या का राज्य मिलना था। परंतु धर्मनिष्ठ भरत ने राजमहल का वैभव, सिंहासन और सभी राजसी सुख-सुविधाओं को पूर्णतः त्याग दिया। उन्होंने अयोध्या छोड़कर इसी नंदीग्राम की भूमि पर तपस्वी जीवन अपनाया और श्रीराम की प्रतीक पादुकाओं (खड़ाऊं) को सिंहासन पर विराजमान कर, स्वयं को केवल राम के सेवक के रूप में रखते हुए धर्मपूर्वक राज्य का संचालन किया।
यह स्थान केवल एक भौगोलिक स्थल नहीं, बल्कि भ्रातृप्रेम, धर्मनिष्ठा, त्याग, समर्पण और राम-भक्ति की सर्वोच्च गाथा का साक्षी है। नंदीग्राम की पावन मिट्टी में आज भी भरत के तप, प्रतीक्षा और अटूट राम-प्रेम की सुगंध बसी हुई है। जो कोई भी श्रद्धालु यहाँ आता है, उसके हृदय में भक्ति, समर्पण और त्याग की भावना स्वतः जागृत हो जाती है।
मुख्य विशेषताएं
- स्थान: अयोध्या से 15 किमी दक्षिण-पूर्व, सरयू नदी तट के निकट, उत्तर प्रदेश
- ऐतिहासिक महत्व: भरत की 14 वर्षों की तपस्थली, पादुका राज्य का केंद्र
- धार्मिक प्रसिद्धि: त्याग, भक्ति और भ्रातृप्रेम का आदर्श स्थल
- पवित्र तीर्थ: भरतकुंड - पवित्र स्नान कुंड (मिनी गया के नाम से प्रसिद्ध)
- मुख्य मंदिर: भरत मंदिर, शिव मंदिर, गयावेदी
- वार्षिक उत्सव: भरतकुंड महोत्सव, पितृपक्ष मेला