लक्ष्मण राजा दशरथ और रानी सुमित्रा के पुत्र थे और राम के अनुज भाई थे। भ्रातृ प्रेम और सेवा के आदर्श लक्ष्मण ने जब राम को वनवास हुआ, तो लक्ष्मण ने अपनी नवविवाहिता पत्नी उर्मिला को छोड़कर 14 वर्षों के वनवास में राम के साथ जाने का निर्णय लिया।
लक्ष्मण भारतीय इतिहास के सबसे महान भाई माने जाते हैं। उन्होंने अपने बड़े भाई राम की सेवा को ही अपना जीवन लक्ष्य बनाया और संपूर्ण जीवन राम की छाया बनकर उनकी रक्षा की। 14 वर्षों के वनवास में लक्ष्मण ने एक पल भी नहीं सोए और राम और सीता की सुरक्षा करते रहे।
लक्ष्मण का जन्म सुमित्रा के गर्भ से अयोध्या में हुआ था। पुत्रकामेष्टि यज्ञ के फलस्वरूप प्रसाद ग्रहण करने से चार पुत्रों का जन्म हुआ। लक्ष्मण शत्रुघ्न के जुड़वां भाई थे।
जन्म से ही लक्ष्मण का राम के प्रति अगाध प्रेम था। वे हर समय राम के साथ रहते थे और राम की हर इच्छा पूरी करने को तत्पर रहते। बचपन से ही राम-लक्ष्मण की जोड़ी अविभाज्य थी।
लक्ष्मण ने महर्षि वशिष्ठ से सभी शास्त्र और अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा प्राप्त की। विश्वामित्र ऋषि के साथ जब राम यज्ञ की रक्षा के लिए गए, तब लक्ष्मण भी साथ गए और वे महर्षि विश्वामित्र से भी अनेक विद्याएं सीखीं।
जब राम ने स्वयंवर में सीता से विवाह किया, तो लक्ष्मण का विवाह उर्मिला से हुआ। दोनों मिथिला नरेश जनक की पुत्रियाँ थीं - सीता और उर्मिला।
जब राम को वनवास हुआ, तो लक्ष्मण तुरंत तैयार हो गए और बोले - "भैया, मैं आपके बिना एक क्षण भी नहीं रह सकता।" राम ने मना किया लेकिन लक्ष्मण की दृढ़ता के सामने झुकना पड़ा।
लक्ष्मण ने अपनी नवविवाहिता पत्नी उर्मिला से बिदा ली और राम के साथ वन में चले गए। यह त्याग अद्भुत था क्योंकि उन्हें राम की सेवा ही सर्वोपरि थी। 14 वर्षों तक लक्ष्मण ने राम और सीता की सेवा की।
14 वर्षों के वनवास में लक्ष्मण ने राम की सुरक्षा का पूरा दायित्व लिया। वे रात को एक पल भी नहीं सोए। निद्रादेवी ने लक्ष्मण से कहा था कि 14 वर्षों की नींद वे उर्मिला को दे दें और वे स्वयं जागते रहें।
लक्ष्मण ने निद्रादेवी की बात मानी और वनवास के पूरे 14 वर्ष तक एक पल की नींद नहीं ली। वे हमेशा राम और सीता के चारों ओर पहरा देते रहे, जिससे लक्ष्मण को भी इसी से "लक्ष्मण रेखा" की प्रसिद्धि मिली।
जब राम स्वर्णमृग का पीछा करने गए थे, तब लक्ष्मण ने सीता की सुरक्षा के लिए एक रेखा खींची और कहा कि सीता इस रेखा के बाहर न जाएं। यह "लक्ष्मण रेखा" सुरक्षा और सीमा का प्रतीक है।
लंका युद्ध में लक्ष्मण की महत्वपूर्ण भूमिका रही। मेघनाद (इंद्रजीत) के साथ युद्ध में लक्ष्मण घायल हुए और हनुमानजी संजीवनी लेकर आए।
लक्ष्मण अत्यंत वीर योद्धा थे। उन्होंने मेघनाद का वध किया जो रावण का सबसे शक्तिशाली पुत्र था। लक्ष्मण के बिना राम का लंका विजय संभव नहीं था।
लक्ष्मण की भ्रातृ प्रेम की कोई सीमा नहीं थी। उन्होंने सुख-सुविधा, पत्नी और राजमहल - सबकुछ त्याग दिया राम की सेवा के लिए।
14 वर्षों तक नहीं सोना और राम-सीता की सुरक्षा करना - यह त्याग अतुलनीय है।
लक्ष्मण अप्रतिम योद्धा थे। मेघनाद जैसे महाबली को पराजित करना उनकी शक्ति का प्रमाण है।
लक्ष्मण भारतीय इतिहास में सेवाभाव के सर्वोच्च उदाहरण हैं। उन्होंने राम की सेवा को ही अपना जीवन लक्ष्य बना लिया।
भाई की सेवा, सीता की रक्षा और राम-राज्य की स्थापना - सभी कर्तव्यों को लक्ष्मण ने पूर्ण निष्ठा से निभाया।
राम के प्रति लक्ष्मण का त्याग अद्वितीय था। उन्होंने अपने सुख की परवाह नहीं की।
लक्ष्मण से सीखते हैं कि भाई के प्रति प्रेम सबसे महत्वपूर्ण है। भ्रातृप्रेम में कोई स्वार्थ नहीं होता।
बड़े भाई की सेवा करना धर्म है। लक्ष्मण ने अपना संपूर्ण जीवन राम की सेवा में समर्पित कर दिया।
सच्चा त्याग निःस्वार्थ होता है। लक्ष्मण ने अपनी पत्नी को छोड़कर राम की सेवा को चुना - यही त्याग है।
"लक्ष्मण रेखा" सीमाओं का पालन करने का प्रतीक है। मर्यादा और सुरक्षा सीमा के भीतर रहती है।
सत्य और धर्म की रक्षा के लिए लक्ष्मण ने असीम वीरता दिखाई। मेघनाद जैसे महाबली को मारना आसान नहीं था।
राम के प्रति, धर्म-कर्म के प्रति निष्ठा ही लक्ष्मण की पहचान थी।
लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला का त्याग भी कम प्रशंसनीय नहीं है। जब लक्ष्मण वनवास के लिए जा रहे थे, तब उर्मिला ने उन्हें रोका नहीं बल्कि आशीर्वाद दिया। 14 वर्षों तक उर्मिला ने अयोध्या में प्रतीक्षा की और तपस्या करती रहीं।
लक्ष्मण की निद्रादेवी से बात - "मेरा नींद 14 वर्ष का उर्मिला सो लें, मैं जाग कर सेवा करूंगा।" यह उर्मिला पर लक्ष्मण का विश्वास और 14 वर्षों की निद्रा का बोझ उर्मिला ने सहा। उन्होंने राम-सीता की सेवा के लिए अपने सुहाग को त्याग दिया।
"लक्ष्मण और उर्मिला का त्याग संपूर्ण विश्व में अद्वितीय है"
जब राम, सीता और लक्ष्मण वनवास पर निकले तो प्रथम पड़ाव वे महर्षि भारद्वाज के प्रयाग में स्थित आश्रम में रुके और लक्ष्मण ने महर्षि से आशीर्वाद लिया।
महर्षि भारद्वाज ने लक्ष्मण को भी शिक्षा दी कि भ्रातृ सेवा परम धर्म है और धर्मपालन में धैर्य की आवश्यकता होती है। महर्षि की शिक्षाएं लक्ष्मण के लिए प्रेरणा स्रोत बनीं।
लक्ष्मण आदर्श भाई, वीर योद्धा और त्याग के प्रतीक के रूप में याद किए जाते हैं। "लक्ष्मण रेखा" जो आज भी सीमाओं के पालन का प्रतीक है। लक्ष्मण का जीवन हमें सिखाता है कि भ्रातृ प्रेम, सेवा और धर्म ही जीवन का सार है।
लक्ष्मण भारतीय संस्कृति में आदर्श भाई के प्रतीक हैं।
भाई और परिवार के प्रति निष्ठा और सेवाभाव को अपनाएं