त्रेतायुग की पावनता | मर्यादा पुरुषोत्तम का जन्म | सरयू तट की पवित्रता | रामनवमी का पुण्यतीर्थस्थल
राम जन्मभूमि वह पावन स्थान है जहाँ मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम का जन्म हुआ था। त्रेतायुग में चैत्र मास की रामनवमी के दिन, अयोध्या के राजा दशरथ की महारानी कौशल्या की कोख से भगवान राम ने जन्म लिया था। यह स्थान सदियों से भारतीय संस्कृति, धर्म और परंपरा का केंद्र रहा है - यह सिर्फ जन्मभूमि नहीं बल्कि आस्था का प्रतीक है।
अयोध्या की इस भूमि ने मर्यादा और धर्म के प्रतीक राम को जन्म दिया जो आज तक लाखों भक्तों के लिए प्रेरणा और आदर्श हैं। इस पवित्र तीर्थ पर आने से तीर्थयात्रियों को मोक्ष और पुण्य की प्राप्ति होती है, और कई लोग मानते हैं कि यहाँ की मिट्टी भी पवित्र है - ये मान्यता आस्तिकों में गहराई से निहित है।
राम जन्मभूमि केवल एक स्थान नहीं बल्कि भारतीय पौराणिक और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। वाल्मीकि रामायण, रामचरितमानस और अन्य धार्मिक ग्रंथों में इस पवित्र भूमि का विस्तृत वर्णन मिलता है।
"चैत्रे नावमिके तिथौ... नक्षत्रे अदिति दैवत्ये..."
(बाल कांड, सर्ग 18)
वाल्मीकि रामायण में स्पष्ट रूप से वर्णित है कि चैत्र माह की नवमी तिथि को, जब पुनर्वसु नक्षत्र था, कर्क लग्न में दोपहर के समय राम का जन्म हुआ। यह तिथि आज भी रामनवमी के रूप में पूरे भारत में मनाई जाती है।
"नौमी तिथि मधुमास पुनीता। सुकल पक्ष अभिजित हरि प्रीता॥
मध्य दिवस अति सीत न घामा। पावन काल लोक बिश्रामा॥"
(बालकांड)
गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में राम जन्मभूमि और जन्म के क्षण का अत्यंत भावुक और दिव्य वर्णन किया है। उन्होंने लिखा कि यह क्षण न केवल अयोध्या बल्कि पूरे जगत के लिए पावन था।
त्रेतायुग में रामनवमी के दिन राजा दशरथ और महारानी कौशल्या के यहाँ भगवान विष्णु ने राम अवतार लिया। यह स्थान तभी से पवित्र माना जाने लगा।
राम के राज्यारोहण के बाद यह जन्मभूमि और भी पवित्र हो गई। राम राज्य की स्थापना में इस भूमि का विशेष स्थान था। राम के वनवास के बाद भी भरत ने इस स्थान को पूजनीय माना।
पुरातात्विक खुदाई और प्राचीन अभिलेखों से यह स्थान हज़ारों वर्ष पुराना है। विभिन्न काल में इस स्थान पर मंदिर निर्माण और संरक्षण के प्रयास किए गए।
5 अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने राम जन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर की आधारशिला रखी। यह ऐतिहासिक क्षण लाखों-करोड़ों राम भक्तों के लिए स्वप्न का साकार होना था।
राम जन्मभूमि हिंदुओं के सात पवित्र तीर्थों (सप्त पुरी) में से एक है। इस स्थान पर आने से तीर्थयात्रियों को पुण्य की प्राप्ति होती है और जीवन में धर्म और मर्यादा की प्रेरणा मिलती है।
हर वर्ष चैत्र माह की नवमी को रामनवमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन लाखों भक्त राम जन्मभूमि पर आकर भगवान राम के जन्मोत्सव में शामिल होते हैं। यह भारत के सबसे बड़े धार्मिक उत्सवों में से एक है।
राम जन्मभूमि भारतीय संस्कृति और आस्था का प्रतीक है। यह स्थान मर्यादा, धर्म, सत्य और न्याय के मूल्यों का प्रतिनिधित्व करता है जो भगवान राम ने स्थापित किए।
जब भगवान श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण वनवास के लिए अयोध्या से निकले तो उन्होंने प्रयागराज (इलाहाबाद) के पास महर्षि भारद्वाज के आश्रम में ठहराव किया। महर्षि ने उन्हें आतिथ्य प्रदान किया और मार्गदर्शन दिया।
जब भरत राम को वापस लाने के लिए निकले तो वे भी महर्षि भारद्वाज के आश्रम में रुके। महर्षि ने पूरी सेना और नगरवासियों का भव्य स्वागत किया और उन्हें राम के बारे में बताया।
यह संबंध दर्शाता है कि राम जन्मभूमि से निकली परंपरा ने महर्षि भारद्वाज जैसे महान ऋषियों का आशीर्वाद और मार्गदर्शन प्राप्त किया। महर्षि भारद्वाज सेवा संस्थान इसी परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए समर्पित है।
राम जन्मभूमि पर दर्शन करने प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु आते हैं। यह तीर्थयात्रा भारतीय धार्मिक परंपरा का अभिन्न अंग है और भक्तों के लिए जीवन की महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है।
आज के समय में जब मूल्यों और परंपराओं का ह्रास हो रहा है, राम जन्मभूमि मर्यादा, धर्म और सत्य की याद दिलाती है। यह स्थान केवल एक धार्मिक स्थल नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति और पहचान का प्रतीक है।
राम जन्मभूमि हमें याद दिलाती है कि धर्म और मर्यादा के मूल्य कभी पुराने नहीं होते। भगवान राम के आदर्श आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने त्रेतायुग में थे।
मर्यादा पुरुषोत्तम के आदर्शों को अपनाएं और भारतीय संस्कृति की रक्षा करें