देवताओं के गुरु | ज्ञान और विद्या के स्वामी | गुरु ग्रह और महर्षि भारद्वाज के पूर्वज
महर्षि ब्रहस्पति वैदिक परंपरा में देवताओं के गुरु और ज्योतिष शास्त्र के प्रणेता हैं। वे अंगिरा ऋषि के पुत्र थे और ज्ञान, नीति और शास्त्रों के महान आचार्य थे। उनके नाम पर "बृहस्पति" (गुरु का प्रतीक) और "गुरुवार" (बृहस्पतिवार) की परंपरा है जो आज भी जारी है।
महर्षि ब्रहस्पति अंगिरा ऋषि के पुत्र थे और सप्तर्षि परंपरा से जुड़े हुए थे। वे न केवल एक महान तपस्वी थे बल्कि एक विद्वान आचार्य भी थे जिन्होंने नीति, धर्म, ज्योतिष और अन्य शास्त्रों की रचना की। उन्हें ज्योतिष शास्त्र का प्रणेता भी माना जाता है।
ऋग्वेद में ब्रहस्पति का अनेक बार उल्लेख मिलता है जहाँ उन्हें देवताओं के गुरुदेव और बुद्धि के देवता के रूप में वर्णित किया गया है।
यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद में भी ब्रहस्पति का विस्तृत वर्णन मिलता है।
"बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद्
द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु।
यद्दीदयच्छवस ऋतप्रजात
तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्॥"
अर्थ: हे ब्रहस्पति! जो भी दिव्य तेजोमय (शक्ति) है जो सभी कर्मों में प्रकाशित होता है और जो तुम ने सत्य से उत्पन्न हुआ है, वह शक्ति हमें भी दिव्य ज्ञान प्रदान करे। हे गुरुदेव! वह दिव्य धन हमें दो।
"बृहस्पतिर्न वः सखा
जनानामस्तु पूर्वध्युत्॥"
अर्थ: ब्रहस्पति आपके साथी हों और पूर्ण प्रकाश दें जो सभी को आगामी जन्म, मृत्यु और जीवन चक्र से मुक्ति देता है।
पौराणिक वर्णनों के अनुसार, ब्रहस्पति महर्षि अंगिरा के पुत्र थे। महर्षि अंगिरा ब्रह्मदेव पराशर के मानस पुत्रों में से एक थे, इसलिए ब्रहस्पति भी दिव्य परंपरा से जुड़े हुए थे।
विष्णु पुराण और मत्स्य पुराण में ब्रहस्पति को सृष्टिकर्ता के सबसे बुद्धिमान पुत्र बताया गया है। उन्होंने अंगिरा ऋषि से वैदिक ज्ञान, ब्रह्मविद्या और सारे शास्त्रों की शिक्षा प्राप्त की।
पौराणिक काल में ब्रहस्पति को देवताओं के गुरु के रूप में नियुक्त किया गया था। वे सभी देवों को नीति, धर्म और युद्धनीति की शिक्षा देते थे।
ज्योतिष शास्त्र में ब्रहस्पति को गुरु ग्रह कहा जाता है जो ज्ञान, धर्म, बुद्धिमत्ता, नीति और धन के प्रतीक हैं। गुरु ग्रह शुभ ग्रहों में सबसे शक्तिशाली माना जाता है।
शिक्षा, ज्ञान परिवहन और बुद्धि
बृहस्पति - धन की वृद्धि
न्यायप्रियता और धर्म की रक्षा
धर्म और नैतिकता का प्रतीक
वैदिक ज्योतिष में बृहस्पति ग्रह (गुरु ग्रह/Jupiter) को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। महर्षि ब्रहस्पति के नाम पर यह ग्रह नामित है, क्योंकि नीति, धर्म, ज्ञान और बुद्धि का प्रतीक यह ग्रह है।
महर्षि ब्रहस्पति के सबसे प्रसिद्ध पुत्र महर्षि भारद्वाज थे जिन्हें उन्होंने स्वयं वैदिक ज्ञान दिया। ब्रहस्पति की परंपरा भारद्वाज के माध्यम से आगे चली, वेदज्ञान, निःशुल्क और शिक्षा की परंपरा लाखों वर्षों तक चलती रही।
देवगुरु ब्रहस्पति से उनके पुत्र भारद्वाज ने न केवल वेदों का ज्ञान प्राप्त किया, बल्कि नीति, योग और विज्ञान भी सीखा। ब्रहस्पति परम्परा द्वारा भारद्वाज गोत्र की नींव रखी गई।
महर्षि ब्रहस्पति की विरासत भारद्वाज के माध्यम से आज तक चली आ रही है। भारद्वाज गोत्र के लोग न केवल ब्रहस्पति से बल्कि पूरी अंगिरस परंपरा से जुड़े हैं, जिसका गौरवशाली इतिहास है।
ब्रहस्पति नीति प्राचीन भारत की राजनीति में अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रंथ है। उनकी नीति में राज्य के संचालन के सिद्धांत दिए गए हैं, जिन्हें आज भी प्रासंगिक माना जाता है।
गुरुवार (बृहस्पतिवार) को ब्रहस्पति देव की पूजा होती है। इस दिन पीले वस्त्र पहनना, पीले फूल चढ़ाना और ब्रहस्पति की आराधना करने से शिक्षा में सफलता मिलती है। गुरु का आशीर्वाद भी इसी दिन लिया जाता है।
ब्रहस्पति मंत्र का जाप करने से विद्या की प्राप्ति होती है। प्रसिद्ध मंत्र: "ॐ बृं बृहस्पतये नमः" या "ॐ ग्राम ग्रीम ग्रौम सः गुरवे नमः"। गुरुवार को 108 बार जप करने का विधान है।
पुखराज (Yellow Sapphire) बृहस्पति ग्रह का रत्न है। ज्योतिष में पुखराज, शिक्षा में सफलता, आर्थिक समृद्धि, संतान और ज्ञान लाभ के लिए धारण करने की सलाह दी जाती है। पुखराज को सोने में जड़कर पहनना शुभ माना जाता है।
बृहस्पतिवार की पूजा करने से विद्या में सफलता मिलती है, बुद्धि तेज होती है और परीक्षा में अच्छे परिणाम आते हैं।
गुरु ग्रह शुभ होने पर धन की वृद्धि होती है। आर्थिक संकट दूर होता है।
पुत्र-प्राप्ति में भी ब्रहस्पति ग्रह शुभ होना आवश्यक है। संतान सुख के लिए गुरुवार व्रत किया जाता है।
गुरु कृपा प्राप्त होने से आध्यात्मिक यात्रा में प्रगति होती है और मोक्ष का मार्ग मिलता है।
महर्षि ब्रहस्पति की विरासत आज भी जीवित है जो न केवल वेदों, नीति, योग और ज्ञान की परंपरा को बनाए रखती है बल्कि गुरु-शिष्य परंपरा, ज्ञान और विद्या की सेवा के रूप में - यह सब ब्रहस्पति के योग हैं।
आज भी वेद शिक्षा परम्परा और छठे मंडल की पूजा होती है
गुरु-शिष्य परंपरा और आज भी भारत में जीवित है
बृहस्पति ग्रह की पूजा का महत्व आज भी है
ज्ञान, विद्या और नीति के मार्ग पर चलकर देवगुरु ब्रहस्पति के आदर्शों को आत्मसात करें