सप्तर्षि मंडल के ज्येष्ठ ऋषि | ब्रह्मदेव पराशर के मानस पुत्र | अग्नि विद्या के प्रणेता | महर्षि ब्रहस्पति के पिता
महर्षि अंगिरा वैदिक परंपरा के सर्वाधिक आदरणीय महर्षियों में से एक हैं जो ब्रह्मदेव पराशर के मन से उत्पन्न मानस पुत्रों में प्रथम हैं। वैदिक साहित्य में महर्षि अंगिरा का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। उनके नाम पर अंगिरस "अंगिरा" की गोत्र परंपरा प्रचलित है जो आज भी लाखों ब्राह्मणों में प्रवाहित है।
महर्षि अंगिरा को अग्नि देवता का अवतार भी माना जाता है। वे न केवल एक महान तपस्वी थे बल्कि अ एक विद्वान आचार्य भी थे जिन्होंने वेदों के प्रचार और प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके द्वारा रचित मंत्र आज भी ऋग्वेद और अथर्ववेद में सुरक्षित हैं, जिनका उपयोग विभिन्न कर्मकांडों में किया जाता है।
महर्षि अंगिरा के पुत्र में सर्वाधिक प्रसिद्ध ब्रहस्पति हैं और महर्षि भारद्वाज भी अंगिरा के वंश से संबंधित माने जाते हैं।
ऋग्वेद में महर्षि अंगिरा का अनेकों बार उल्लेख मिलता है। उन्हें अग्नि मंत्रों (अग्नि सूक्त) के मुख्य द्रष्टा के रूप में माना जाता है।
अथर्ववेद को "अथर्वांगिरस वेद" भी कहा जाता है, जो अंगिरा ऋषि के योगदान को दर्शाता है।
"अग्निं दूतं पुरोदधे हविष्कृतं सदस्यम्।
होतारं विश्ववेदसं अग्निं मन्द्राय चेतसे॥"
अर्थ: अंगिरा वंश द्वारा रचित यह मंत्र अग्नि देव की स्तुति करता है। अग्नि को दूतों के रूप में स्थापित किया जाता है जो देवों और मनुष्यों के बीच में संदेश का माध्यम बनते हैं।
"स घा नो अस्य अंगिरसो यथावशम्।
इंद्रो अर्वता गमत्॥"
अर्थ: हे देव इंद्र! जैसे आप अंगिरस ऋषियों की सहायता करने आते थे, वैसे ही हमारी ओर भी आएं (यह अंगिरा ऋषि द्वारा इंद्र को आह्वान है)।
"अंगिरा प्रथमो धीरः समिधानोऽजायत।
देवानामपि पूर्वज उस प्रणेता मनीषिभिः॥"
अर्थ: अंगिरा ऋषि की उत्पत्ति सबसे प्रथम (ब्रह्मा) के मन से हुई और वे देवताओं से भी पूर्व जन्मे हैं। वे विद्वानों में सर्वप्रथम और ज्ञान का प्रणेता माने जाते हैं।
पौराणिक वर्णनों के अनुसार, महर्षि अंगिरा ब्रह्मदेव पराशर के मानस पुत्रों में से एक थे - अर्थात उन की उत्पत्ति ब्रह्मा के मन से हुई थी न कि गर्भ से। यह उनके विशिष्ट आध्यात्मिक स्तर को दर्शाता है।
विष्णु पुराण और मत्स्य पुराण में अंगिरा को सृष्टिकर्ता ब्रह्मा के दस या ग्यारह मानस पुत्रों में "प्रथम ऋषि" के रूप में माना गया है।
महर्षि अंगिरा सप्तर्षि मंडल (सात महान ऋषियों) में से सर्वोच्च स्थान रखते हैं। ज्योतिष शास्त्र में सप्तर्षि मंडल को Ursa Major/Great Bear constellation के नाम से जाना जाता है, जिसमें अंगिरा का स्थान विशिष्ट माना जाता है।
नोट: विभिन्न युगों (कल्पों) में सप्तर्षि मंडल की रचना बदलती रहती है, परंतु अंगिरा का स्थान अधिकतर मंडलों में स्थिर रहा है।
महर्षि अंगिरा के अनेक पुत्र थे जो सभी महान विद्वान थे। इन्हें "अंगिरस" या "अंगिरा गोत्रज" के नाम से जाना जाता है।
ब्रहस्पति के माध्यम से महर्षि भारद्वाज भी अंगिरा के वंश से सम्बंधित हैं। अतः यह अंगिरस गोत्र की ही विस्तृत शाखा है।
प्राचीन काल में महर्षि अंगिरा को देवताओं के पुरोहित (पुजारी) माना जाता था। बाद में उनके पुत्र ब्रहस्पति ने यह पद संभाला और वे "देव गुरु" के रूप में प्रसिद्ध हुए।
कुछ पौराणिक कथाओं में अंगिरा को भी देव गुरु के रूप में माना गया है। उन्हें यज्ञ और तपस्या का प्रवर्तक माना जाता है। कुछ ग्रंथों में उन्हें "प्रजा पिता" भी कहा गया है।
महर्षि अंगिरा को अग्नि विद्या का प्रथम आचार्य माना जाता है। कई प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, उन्होंने अग्नि की पूजा और संधरण की परंपरा की स्थापना की थी, जो यज्ञों और कर्मकांडों का आधार है।
अंगिरा ऋषि ने अग्निहोत्र (प्रतिदिन अग्नि में आहुति देने की प्रथा) की स्थापना की। उन्होंने अग्नि को सर्वोच्च देवता के रूप में प्रतिष्ठित किया और यज्ञानुष्ठान विधियों को व्यवस्थित किया।
ऋग्वेद के अनेक सूक्तों की रचना अंगिरस परिवार ने की। इनमें अग्नि सूक्त और इंद्र स्तुतियां प्रमुख हैं जो आज भी यज्ञों में उपयोग की जाती हैं।
अंगिरा ने धर्मशास्त्र और यज्ञ विधियों की शिक्षा दी। उनकी परंपरा से अनेक प्रमुख ऋषि और विद्वान उत्पन्न हुए जो वेदों का प्रचार करते रहे।
अंगिरा को अग्नि का "मानव रूप" भी माना गया है। उनके नाम से ही "अंगार" या "कोयला" शब्द आया है जो जलती हुई अग्नि से संबंधित है।
अथर्ववेद को "अथर्वांगिरस" भी कहा जाता है, जो अंगिरा और अथर्वा - दोनों ऋषियों के नाम से बना है। इस वेद में शामिल हैं:
महर्षि अंगिरा ने धर्मशास्त्रीय ग्रंथों में अनेक उपदेश दिए हैं जो आज भी प्रासंगिक हैं। उनके अनुसार मनुष्य को चाहिए कि वह सदा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहे।
महर्षि अंगिरा से "अंगिरा गोत्र" की स्थापना हुई। उनके वंश में अनेक महान विद्वान हुए, जिनमें प्रमुख शामिल हैं:
अंगिरा गोत्र से जुड़े लोग आज भी इस महान परम्परा से जुड़े हुए हैं। इनमें प्रमुख देवगुरु ब्रहस्पति और उनके वंशज महर्षि भारद्वाज शामिल हैं जो भी आज एक गौरवशाली गोत्र हैं।
महर्षि अंगिरा की विरासत आज भी हमारे बीच में जीवित है। वे न केवल एक महान तपस्वी और विद्वान थे, बल्कि एक श्रेष्ठ आध्यात्मिक गुरु और धर्मप्रचारक भी थे। उनके द्वारा प्रतिपादित अग्नि विद्या, यज्ञ परंपरा और वैदिक संस्कृति - आज भी भारतीय समाज के आधार हैं।
अंगिरा के मंत्रों में आज भी वैदिक परंपरा जीवित है
यज्ञानुष्ठान और अग्नि संस्कार आज भी अनिवार्य हैं
लाखों परिवार में अंगिरस गोत्र की पहचान
उनकी दिशा में आगे बढ़ें, ज्ञान की खोज में और वेद धर्म की सेवा में संलग्न हों और समाजसेवा में योगदान दें।