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महर्षि अंगिरा

सप्तर्षि मंडल के ज्येष्ठ ऋषि | ब्रह्मदेव पराशर के मानस पुत्र | अग्नि विद्या के प्रणेता | महर्षि ब्रहस्पति के पिता

🙏 महर्षि अंगिरा का संक्षिप्त परिचय

महर्षि अंगिरा वैदिक परंपरा के सर्वाधिक आदरणीय महर्षियों में से एक हैं जो ब्रह्मदेव पराशर के मन से उत्पन्न मानस पुत्रों में प्रथम हैं। वैदिक साहित्य में महर्षि अंगिरा का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। उनके नाम पर अंगिरस "अंगिरा" की गोत्र परंपरा प्रचलित है जो आज भी लाखों ब्राह्मणों में प्रवाहित है।

मुख्य विशेषताएं

  • नाम: अंगिरा, अंगीरस, अंगिरस
  • पिता: ब्रह्मदेव पराशर (मानस पुत्र - मन से उत्पन्न)
  • पत्नी: स्मृति, श्रद्धा (विभिन्न पुराणों के अनुसार)
  • पुत्र: ब्रहस्पति, उतथ्य, संवर्त और अन्य
  • योगदान: अंगिरस गोत्र की स्थापना
  • विशेषज्ञता: अग्नि विद्या का प्रणेता, अथर्व वेद के मंत्रद्रष्टा, ज्योतिष शास्त्र के आचार्य

महर्षि अंगिरा को अग्नि देवता का अवतार भी माना जाता है। वे न केवल एक महान तपस्वी थे बल्कि अ एक विद्वान आचार्य भी थे जिन्होंने वेदों के प्रचार और प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके द्वारा रचित मंत्र आज भी ऋग्वेद और अथर्ववेद में सुरक्षित हैं, जिनका उपयोग विभिन्न कर्मकांडों में किया जाता है।

महर्षि अंगिरा के पुत्र में सर्वाधिक प्रसिद्ध ब्रहस्पति हैं और महर्षि भारद्वाज भी अंगिरा के वंश से संबंधित माने जाते हैं।

📚 वेदों में महर्षि अंगिरा

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ऋग्वेद में उल्लेख

ऋग्वेद में महर्षि अंगिरा का अनेकों बार उल्लेख मिलता है। उन्हें अग्नि मंत्रों (अग्नि सूक्त) के मुख्य द्रष्टा के रूप में माना जाता है।

  • अंगिरस ऋषि मंडल की सूक्तों के द्रष्टा
  • अग्नि और इंद्र के स्तुतियों में अंगिरा का विशेष स्थान
  • अंगिरस परिवार की विभिन्न शाखाओं द्वारा रचित सूक्त
  • अंगिरा के पुत्र देवों द्वारा अनेक मंत्रों की रचना

अथर्ववेद और अन्य ग्रंथ

अथर्ववेद को "अथर्वांगिरस वेद" भी कहा जाता है, जो अंगिरा ऋषि के योगदान को दर्शाता है।

  • अथर्ववेद: अंगिरा और अथर्वा दोनों ऋषियों का नाम इस वेद में सम्मिलित
  • ब्राह्मण: शतपथ ब्राह्मण में अंगिरा का विस्तृत विवरण
  • पुराण: विष्णु पुराण और अन्य में इनका इतिहास
  • स्मृति साहित्य में अंगिरा को धर्मशास्त्र के आचार्य के रूप में भी माना गया है

प्रमुख महर्षि अंगिरा के मंत्र

ऋग्वेद में अंगिरा का सूक्त

"अग्निं दूतं पुरोदधे हविष्कृतं सदस्यम्।
होतारं विश्ववेदसं अग्निं मन्द्राय चेतसे॥"

अर्थ: अंगिरा वंश द्वारा रचित यह मंत्र अग्नि देव की स्तुति करता है। अग्नि को दूतों के रूप में स्थापित किया जाता है जो देवों और मनुष्यों के बीच में संदेश का माध्यम बनते हैं।

इंद्र को अंगिरा की स्तुति (ऋग्वेद)

"स घा नो अस्य अंगिरसो यथावशम्।
इंद्रो अर्वता गमत्॥"

अर्थ: हे देव इंद्र! जैसे आप अंगिरस ऋषियों की सहायता करने आते थे, वैसे ही हमारी ओर भी आएं (यह अंगिरा ऋषि द्वारा इंद्र को आह्वान है)।

अंगिरा - ब्रह्मा की स्तुति

"अंगिरा प्रथमो धीरः समिधानोऽजायत।
देवानामपि पूर्वज उस प्रणेता मनीषिभिः॥"

अर्थ: अंगिरा ऋषि की उत्पत्ति सबसे प्रथम (ब्रह्मा) के मन से हुई और वे देवताओं से भी पूर्व जन्मे हैं। वे विद्वानों में सर्वप्रथम और ज्ञान का प्रणेता माने जाते हैं।

📜 पुराणों में महर्षि अंगिरा

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ब्रह्मा के मानस पुत्र

पौराणिक वर्णनों के अनुसार, महर्षि अंगिरा ब्रह्मदेव पराशर के मानस पुत्रों में से एक थे - अर्थात उन की उत्पत्ति ब्रह्मा के मन से हुई थी न कि गर्भ से। यह उनके विशिष्ट आध्यात्मिक स्तर को दर्शाता है।

विष्णु पुराण और मत्स्य पुराण में अंगिरा को सृष्टिकर्ता ब्रह्मा के दस या ग्यारह मानस पुत्रों में "प्रथम ऋषि" के रूप में माना गया है।

दस मानसपुत्र (विष्णु पुराण):
  • मरीचि
  • अत्रि
  • अंगिरा
  • पुलस्त्य
  • पुलह
  • क्रतु
  • भृगु
  • वशिष्ठ
  • दक्ष
  • नारद
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सप्तर्षि मंडल में स्थान

महर्षि अंगिरा सप्तर्षि मंडल (सात महान ऋषियों) में से सर्वोच्च स्थान रखते हैं। ज्योतिष शास्त्र में सप्तर्षि मंडल को Ursa Major/Great Bear constellation के नाम से जाना जाता है, जिसमें अंगिरा का स्थान विशिष्ट माना जाता है।

सात प्रमुख सप्तर्षि मंडल:

  • भृगु
  • अत्रि
  • अंगिरा
  • विश्वामित्र
  • कश्यप
  • वशिष्ठ
  • जमदग्नि

नोट: विभिन्न युगों (कल्पों) में सप्तर्षि मंडल की रचना बदलती रहती है, परंतु अंगिरा का स्थान अधिकतर मंडलों में स्थिर रहा है।

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उनके वंशज और पुत्र

महर्षि अंगिरा के अनेक पुत्र थे जो सभी महान विद्वान थे। इन्हें "अंगिरस" या "अंगिरा गोत्रज" के नाम से जाना जाता है।

प्रमुख पुत्र:

  • ब्रहस्पति (बृहस्पति) - देवताओं के गुरु, ज्योतिष शास्त्र के प्रणेता
  • उतथ्य - वेदों में विख्यात
  • संवर्त - महान ऋषि
  • सुदास्या - अग्नि विद्या के ज्ञाता
  • अनेक अन्य पुत्र और शिष्य

ब्रहस्पति के माध्यम से महर्षि भारद्वाज भी अंगिरा के वंश से सम्बंधित हैं। अतः यह अंगिरस गोत्र की ही विस्तृत शाखा है।

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देवताओं के पुरोहित

प्राचीन काल में महर्षि अंगिरा को देवताओं के पुरोहित (पुजारी) माना जाता था। बाद में उनके पुत्र ब्रहस्पति ने यह पद संभाला और वे "देव गुरु" के रूप में प्रसिद्ध हुए।

कुछ पौराणिक कथाओं में अंगिरा को भी देव गुरु के रूप में माना गया है। उन्हें यज्ञ और तपस्या का प्रवर्तक माना जाता है। कुछ ग्रंथों में उन्हें "प्रजा पिता" भी कहा गया है।

🔥 महर्षि अंगिरा और अग्नि विद्या का ज्ञान

अग्नि के संरक्षक और ज्ञान दाता

महर्षि अंगिरा को अग्नि विद्या का प्रथम आचार्य माना जाता है। कई प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, उन्होंने अग्नि की पूजा और संधरण की परंपरा की स्थापना की थी, जो यज्ञों और कर्मकांडों का आधार है।

🔥 अग्निहोत्र की परंपरा

अंगिरा ऋषि ने अग्निहोत्र (प्रतिदिन अग्नि में आहुति देने की प्रथा) की स्थापना की। उन्होंने अग्नि को सर्वोच्च देवता के रूप में प्रतिष्ठित किया और यज्ञानुष्ठान विधियों को व्यवस्थित किया।

✨ वेद मंत्र रचना

ऋग्वेद के अनेक सूक्तों की रचना अंगिरस परिवार ने की। इनमें अग्नि सूक्त और इंद्र स्तुतियां प्रमुख हैं जो आज भी यज्ञों में उपयोग की जाती हैं।

📚 शिक्षा प्रदान

अंगिरा ने धर्मशास्त्र और यज्ञ विधियों की शिक्षा दी। उनकी परंपरा से अनेक प्रमुख ऋषि और विद्वान उत्पन्न हुए जो वेदों का प्रचार करते रहे।

🌟 देवताओं का संबंध

अंगिरा को अग्नि का "मानव रूप" भी माना गया है। उनके नाम से ही "अंगार" या "कोयला" शब्द आया है जो जलती हुई अग्नि से संबंधित है।

अथर्ववेद में अंगिरा का विशेष योगदान

अथर्ववेद को "अथर्वांगिरस" भी कहा जाता है, जो अंगिरा और अथर्वा - दोनों ऋषियों के नाम से बना है। इस वेद में शामिल हैं:

  • अग्नि मंत्र: रोग, शत्रु और पाप से मुक्ति के मंत्र
  • शांति कर्म: घरेलू शांति और समृद्धि के लिए प्रार्थनाएं
  • चिकित्सा: औषधि और चिकित्सा के ज्ञान का संग्रह
  • ज्योतिष संहिता: खगोलीय ज्ञान और नक्षत्रों का विज्ञान

📿 महर्षि अंगिरा की शिक्षाएं

ज्ञान और तपस्या

  • तपस्या का महत्व: सच्चा ज्ञान तपस्या से मिलता है, जिससे ब्रह्मत्व की प्राप्ति होती है।
  • यज्ञ धर्म: यज्ञ और हवन से देवताओं की संतुष्टि और लोक कल्याण होता है।
  • वेदों की रक्षा: वेद संरक्षण और वेद प्रचार मनुष्य का प्रथम कर्तव्य है।

जीवन मूल्य

  • सत्य और धर्म: सत्यम् (सत्य) और धर्मम् (कर्तव्य) जीवन के आधार हैं।
  • गुरु शिष्य परंपरा: ज्ञान को गुरु-शिष्य परम्परा से आगे बढ़ाना प्रत्येक विद्वान का कर्तव्य है।
  • समाज की सेवा: प्राणिमात्र की सेवा और समाज का कल्याण मनुष्य का परम लक्ष्य है।

प्रमुख उपदेश

महर्षि अंगिरा ने धर्मशास्त्रीय ग्रंथों में अनेक उपदेश दिए हैं जो आज भी प्रासंगिक हैं। उनके अनुसार मनुष्य को चाहिए कि वह सदा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहे।

प्रमुख सिद्धांत:

  • अग्नि को सदा पवित्र रखना
  • देवताओं की पूजा और आराधना
  • अहिंसा परमो धर्मः (सर्वोच्च धर्म)
  • ब्राह्मणों और गुरुजनों का आदर
  • वेद पाठ और अध्ययन

🌳 अंगिरा गोत्र का महत्व

अंगिरा गोत्र की व्युत्पत्ति

महर्षि अंगिरा से "अंगिरा गोत्र" की स्थापना हुई। उनके वंश में अनेक महान विद्वान हुए, जिनमें प्रमुख शामिल हैं:

प्रमुख शाखाएं

  • भारद्वाज गोत्र - ब्रहस्पति के वंशज भारद्वाज से
  • गर्ग गोत्र - अंगिरा के वंशज गर्ग से
  • गौतम गोत्र - शाण्डिल्य (अग्नि पुत्र) से
  • कौशिक आदि गोत्र - अंगिरा के वंशज से

गोत्र का महत्व

  • वंशावली और पहचान का आधार
  • विवाह निर्णय में महत्वपूर्ण
  • धार्मिक संस्कारों में पितरों का उल्लेख (तर्पण संस्कार में)
  • सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान

वंश परंपरा का श्रृंखला

अंगिरा गोत्र से जुड़े लोग आज भी इस महान परम्परा से जुड़े हुए हैं। इनमें प्रमुख देवगुरु ब्रहस्पति और उनके वंशज महर्षि भारद्वाज शामिल हैं जो भी आज एक गौरवशाली गोत्र हैं।

अंगिरा → ब्रहस्पतिभारद्वाज
(यह वंशावली का सरल रूप)

🌟 उनकी शाश्वत विरासत

महर्षि अंगिरा की विरासत आज भी हमारे बीच में जीवित है। वे न केवल एक महान तपस्वी और विद्वान थे, बल्कि एक श्रेष्ठ आध्यात्मिक गुरु और धर्मप्रचारक भी थे। उनके द्वारा प्रतिपादित अग्नि विद्या, यज्ञ परंपरा और वैदिक संस्कृति - आज भी भारतीय समाज के आधार हैं।

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वैदिक संस्कृति

अंगिरा के मंत्रों में आज भी वैदिक परंपरा जीवित है

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अग्नि परंपरा

यज्ञानुष्ठान और अग्नि संस्कार आज भी अनिवार्य हैं

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गोत्र परंपरा

लाखों परिवार में अंगिरस गोत्र की पहचान

महर्षि अंगिरा की परंपरा को आगे बढ़ाएं

उनकी दिशा में आगे बढ़ें, ज्ञान की खोज में और वेद धर्म की सेवा में संलग्न हों और समाजसेवा में योगदान दें।

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